दीपा का आरोप है कि अजित के कहने पर ही वह ऑपरेशन करवाकर लड़का से लड़की बनी
दार्जिलिंग ज़िले में सिलीगुड़ी की दीपा घोष के जीवन में कुछ दिन पहले तक सब ठीक-ठाक था. कुछ दिनों पहले तक उनका नाम दीपक घोष था.
लेकिन अपने समलैंगिक मित्र अजित मंडल के बार-बार कहने पर कथित तौर पर उससे शादी करने के लिए दीपक ने ऑपरेशन के जरिए अपना लिंग परिवर्तन कराया और दीपक से दीपा बन गया.
यहीं से उसकी परेशानियों का सिलसिला शुरू हो गया. युवक से युवती बनने के बाद उसमें अजित की दिलचस्पी धीरे-धीरे कम हो गई.
उससे शादी तो दूर, शादी के डर से अजित बीते सप्ताह घर से ही फ़रार हो गया.
धोखा
पहले तो अजित लगातार मुझ पर लड़की बनने का दबाव डालता रहा. उसका कहना था कि हम शादी कर लेंगे. मैंने भी काफ़ी सोच-विचार के बाद उसकी बात मान ली
दीपा उर्फ़ दीपक घोष
अब दीपा न घर की रही है और न घाट की. जिस प्रेमी से शादी के लिए उसने जीवन का इतना बड़ा फैसला (लिंग परिवर्तन का) किया, उसने आंखें फेर लीं.
मुसीबत यह है कि अब वह दीपा से दीपक भी नहीं बन सकती है.
थक-हार कर उसने सिलीगुड़ी थाने की न्यू जलपाईगुड़ी पुलिस चौकी में अजित के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई है.
रांगापानी की रहने वाली दीपा ने अपनी शिकायत में कहा है कि अजित ने उस पर शादी के लिए लिंग परिवर्तन कराने का दबाव डाला था. लेकिन तीन महीने पहले हुए इस ऑपरेशन के बाद से वह कन्नी काटने लगा है.
पुलिस चौकी के प्रभारी पंकज थापा बताते हैं, "यह काफ़ी अनोखा मामला है. लेकिन दीपा की शिकायत के आधार पर पुलिस उसके फ़रार प्रेमी को तलाशने का प्रयास कर रही है."
शिकायत में बताया गया है कि अजित से दीपक दो साल पहले मिला था. उसके बाद दोनों एक-दूसरे के काफ़ी करीब आ गए और उनके समलैंगिक संबंध बन गए.
'बार गर्ल'
सिलीगुड़ी में मिलने पर अजित ने शादी से साफ़ इनकार कर दिया. उसके अगले दिन वह किसी को कुछ बताए बिना फ़रार हो गया
दीपा
एक साल बाद दीपक एक नौकरी के सिलसिले में मुंबई चला गया. लेकिन दोनों के बीच फ़ोन और ख़तों के ज़रिए संपर्क बना रहा.
इस बीच, अजित उस पर लिंग परिवर्तन के लिए लगातार दबाव डालता रहा. आख़िर दीपक मुंबई में एक ऑपरेशन के ज़रिए दीपा बन गया.
उसके बाद एक परिचित की सहायता से उसने मुंबई में ही बार गर्ल की नौकरी कर ली.
दीपा बताती है, "पहले तो अजित लगातार मुझ पर लड़की बनने का दबाव डालता रहा. उसका कहना था कि हम शादी कर लेंगे. मैंने भी काफ़ी सोच-विचार के बाद उसकी बात मान ली."
वह बताती है, "ऑपरेशन कामयाब रहने के बाद अचानक अजित का रवैया बदलने लगा. वह मुझसे कन्नी काटने का प्रयास करने लगा. न फ़ोन पर बात करता था और न ही पत्रों का जवाब देता था.इसलिए मैंने बीते सप्ताह मुंबई से सिलीगुड़ी लौटने का फ़ैसला किया."
दीपा का कहना है, "सिलीगुड़ी में मिलने पर अजित ने शादी से साफ़ इनकार कर दिया. उसके अगले दिन वह किसी को कुछ बताए बिना फ़रार हो गया."
'साज़िश'
पुलिस अधिकारी थापा कहते हैं, "अजित के घरवालों को उसके समलैंगिक होने की कोई जानकारी नहीं है. उनके मां-बाप का कहना है कि दीपा उनके 23 साल के भोले-भाले बेटे को फंसाने की साज़िश रच रही है."
लेकिन अजित के प्यार में पागल दीपा अब भी उसे माफ़ करने को तैयार है.
मुंबई में नौकरी से बढ़िया पैसे कमाने वाली दीपा कहती है, "पैसा मेरे लिए कोई समस्या नहीं है. पर मैं अजित से प्यार करती हूं. उससे शादी कर मैं अपना सपना पूरा करना चाहती हूं. लेकिन उसे मेरे प्यार के अपमान का कोई अधिकार नहीं है."
दीपा का सपना पूरा होता है या नहीं, यह तो समय बताएगा लेकिन फिलहाल सिलीगुड़ी पुलिस उसके कथित प्रेमी अजित की तलाश में जुटी
Sunday, June 29, 2008
Thursday, June 26, 2008
haryana police
यहां थाने इसलिए खड़े किए गए हैं ताकि सरकारी दारोगा किसी अबला की इज्जत पर हाथ डाल सके
इस तार-तार इज्जत की सिलाई कहीं नहीं होती
यहां दारोगा से ऊपर सरकार है
पर बिरादरी से ऊपर वह भी नहीं।
अबला की इज्जत नहीं
यहां बिरादरी तय करती है
दारोगा की सजा।
यह सरकार घड़ती है दारोगा के क्लोन
बनाती है एक के बाद एक थाने उनमें तैनात होते हैं
एक के बाद एक दारोगा
कोई जयसिंह है
कोई बलराज सिंह
और कोई सीलक राम।
हां साहब।
यो से देसा में देस हरियाणा
जित दूध-दही का खाणा।
कभी यह कहने वाले
अब माथे पर हाथ रख सिर्फ इतना ही कह पाते हैं
यो किसा देसा में देस हरियाणा
जित थाणें बने बलात्कार का ठिकाना।
मैं पूछता हूं
ये कौन हैं जो मेरे हरियाणा की तसवीर बिगाड़ रहे हैं
पर हुड्डा साहब मौन हैं।
- सुधीर राघव
इस तार-तार इज्जत की सिलाई कहीं नहीं होती
यहां दारोगा से ऊपर सरकार है
पर बिरादरी से ऊपर वह भी नहीं।
अबला की इज्जत नहीं
यहां बिरादरी तय करती है
दारोगा की सजा।
यह सरकार घड़ती है दारोगा के क्लोन
बनाती है एक के बाद एक थाने उनमें तैनात होते हैं
एक के बाद एक दारोगा
कोई जयसिंह है
कोई बलराज सिंह
और कोई सीलक राम।
हां साहब।
यो से देसा में देस हरियाणा
जित दूध-दही का खाणा।
कभी यह कहने वाले
अब माथे पर हाथ रख सिर्फ इतना ही कह पाते हैं
यो किसा देसा में देस हरियाणा
जित थाणें बने बलात्कार का ठिकाना।
मैं पूछता हूं
ये कौन हैं जो मेरे हरियाणा की तसवीर बिगाड़ रहे हैं
पर हुड्डा साहब मौन हैं।
- सुधीर राघव
Thursday, June 19, 2008
सुधीर राघव की कविता
सोचता हूं, घर से बाहर निकलूं
पर कहां?
घर से बाहर हैं घरों की कतारें
इनके बीच सड़कों पर रेंगती भीड़
कुछ पेड़ हैं, जो लगा दिए गए हैं किनारे।
सोचता हूं, इस शहर से बाहर चलूं
पर कहां?
शहर के बाहर बसे हैं बहुतेरे शहर
इनके बीच दौड़ती है भूख इनसान का भेस बनाकर
कुछ खेत हैं, जो चढ़ने वाले हैं किसी सेज (अब सेठ नहीं) की नजर।
सोचता हूं, देश से बाहर उड़ूं पर कहां?
देश के बाहर हैं बहुत से देश
इनके बीच के समन्दर पर तभी पुल बनता है जब जीतनी हो कोई जंग
कुछ कश्तियां हैं पर अलग हैं सबके भेस।
यह मेरी जड़ता है
या मुझमें नहीं है इतनी भूख कि निकल सकूं
इस घर
इस शहर
या
देश से बाहर।
-सुधीर राघव
पर कहां?
घर से बाहर हैं घरों की कतारें
इनके बीच सड़कों पर रेंगती भीड़
कुछ पेड़ हैं, जो लगा दिए गए हैं किनारे।
सोचता हूं, इस शहर से बाहर चलूं
पर कहां?
शहर के बाहर बसे हैं बहुतेरे शहर
इनके बीच दौड़ती है भूख इनसान का भेस बनाकर
कुछ खेत हैं, जो चढ़ने वाले हैं किसी सेज (अब सेठ नहीं) की नजर।
सोचता हूं, देश से बाहर उड़ूं पर कहां?
देश के बाहर हैं बहुत से देश
इनके बीच के समन्दर पर तभी पुल बनता है जब जीतनी हो कोई जंग
कुछ कश्तियां हैं पर अलग हैं सबके भेस।
यह मेरी जड़ता है
या मुझमें नहीं है इतनी भूख कि निकल सकूं
इस घर
इस शहर
या
देश से बाहर।
-सुधीर राघव
सोहणी सिटी
सोहणी सिटी चंडीगढ़ में प्रशासन ने वीरवार को दो अच्छे कदम उठाए। पहला कदम तो यह कि व्यापारियों को बिल्डिंग लॉ में कई संशोधन कर व्यापारियों को राहत दी गई। दूसरा यह कि अब शहर में पीकर गाड़ी चलाने वालों को सीधे हवालात जाना होगा। यह दोनों ही काम बेहद जरूरी थे। समय के साथ ग्राहक बढ़ रहे हैं मगर जगह के बिस्तार की गुंजाइश नहीं। ऐसे में दुकानदारों को बेसमेंट बनाने की इजाजत देना सचमुच सही कदम है। इस तरह शराब पीकर हुड़दंग करने वालों की संख्या भी दिनों-दिन बढ़ रही है। ऐसे में प्रशासन के इन प्रयासों से कुछ राहत मिलेगी ही।
Wednesday, June 18, 2008
sudhir in chandigarh
सोहणी सिटी चंडीगढ़ में तलाक के मामले तेजी से बढे़ हैं। अदालत में तलाक की अजिॆयों की संख्या पिछले कुछ वषोॆं के मुकाबले तीन गुना बढ़ गई हैं। सचमुच यह चिंता का विषय है। माता-पिता के अहंकार के बीच बचपन पिस रहा है। समाजशास्त्रियों का कहना है कि तलाक बढ़ने के पीछे कई कारण है। इनमें सबसे बड़ा तो यह कि अब रिश्ते तय करने में परिवारों की भूमिका सीमित हो गई है। लड़की-लड़का मिल कर शादी तय करते हैं। ऐसे में जब दोनों अलग होने का फैसला करते हैं तो परिवार रिश्ते बचाने के लिए आगे नहीं आ पाता। मनोचिकित्सकों की इस संबंध में राय अलग है। उनका कहना है कि महिलाएं अब आत्मनिभॆर हो रही हैंं। वे अपने फैसले खुद लेने लगी हैं। वे ज्यादा मुखर भी हो गई हैं। इसलिए पुरुषों की सामंतवादी प्रवृति अब नहीं चलने वाली। तलाक तभी रुक सकते हैं जब पुरुष बदलें।
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